मन समझ समझ मेरे भाई,
तेरे एक समझ में ना आई।।
बुरे बुरे कर्म ने टोहे,
मानुष जन्म क्यों वृथा खोवे,
तेरी कौन करेगा सहाई,
तेरे एक समझ में ना आई।।
तू अकरम ने जाके टोहे,
आखिर मैं अकेला रोवे,
तेरा कोई समीपी नाहीं,
तेरे एक समझ में ना आई।।
तु सुक्रम ने जाके टोहले,
सतगुरु के शरण में होले,
तेरी होजा सफल कमाई,
तेरे एक समझ में ना आई।।
गुरु मगनानंद देरे हेला,
सेवानंद कोए दिन दर्शन मेला,
यो समय बितता जाई,
तेरे एक समझ में ना आई।।
मन समझ समझ मेरे भाई,
तेरे एक समझ में ना आई।।
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