मनकी ज्यों भाया,
घर घर में थर चाटे,
नागा नुगरा सब सु आगा,
नागा नुगरा सब सु आगा,
पिंडया जूम पग काटे,
मनकी ज्यूँ भाया,
घर घर में थर चाटे।।
भोली दुनिया बावली रे,
नूल नुल देवे धोक,
धोक लागता धोको करजा,
यांकी पाकी शोक,
लुगाया से हंस हंस बोले,
घर का धनी ने घणो डांटे,
मनकी ज्यूँ भाया,
घर घर में थर चाटे।।
दूजा ने ये देवे आकड़ी,
खुद काकड़ी खावे,
डेली में पग देता पेली,
चार खुना फर जावे,
ज्ञानी बने असल घमंडी,
पग पग पे सरनाटो,
मनकी ज्यूँ भाया,
घर घर में थर चाटे।।
भवसागर से पार करण का,
बन गया ठेकादार,
यांके भरोसे रे जावे तो,
डूबे काली धार,
खुद को भरम मिट्यो नही पूरो,
ये कई चोराशी काटे,
मनकी ज्यूँ भाया,
घर घर में थर चाटे।।
निक्लन बानो रखो संत को,
गुरु चेतन समझावे,
झूठा सांग मत कर उकारा,
का थू लाज घमावे,
कर्म हीन कुंवारा रेजा,
मलेला लुगाया आटे साटे,
मनकी ज्यूँ भाया,
घर घर में थर चाटे।।
मनकी ज्यों भाया,
घर घर में थर चाटे,
नागा नुगरा सब सु आगा,
नागा नुगरा सब सु आगा,
पिंडया जूम पग काटे,
मनकी ज्यूँ भाया,
घर घर में थर चाटे।।
गायक – जगदीश जी वैष्णव।
प्रेषक – बालाजी टेलर गोपालपूरा
नंगजी राम धाकड़।
9799285289