बिन पिये नशा हो जाता है जब सुरत देखूं मोहन की लिरिक्स

बिन पिये नशा हो जाता है,
जब सुरत देखूं मोहन की,
ना जाने क्या हो जाता है,
जब सुरत देखूं मोहन की,
बिन पिए नशा हो जाता है,
जब सुरत देखूं मोहन की।।

तर्ज – मोहन से दिल क्यों लगाया है।



मनमोहन मदन मुरारी है,

जन जन का पालनहारी है,
ये दिल उस पर ही आता है,
जब सुरत देखूं मोहन की,
बिन पिए नशा हो जाता है,
जब सुरत देखूं मोहन की।।



घुंघराली लटें मुख पर लटके,

कानों में कुण्डल है छलके,
जब मन्द मन्द मुस्काता है,
जब सुरत देखूं मोहन की,
बिन पिए नशा हो जाता है,
जब सुरत देखूं मोहन की।।



अंदाज निराले है उनके,

दुख दर्द मिटाते जीवन के,
मेरा रोम रोम हर्षाता है,
जब सुरत देखूं मोहन की,
बिन पिए नशा हो जाता है,
जब सुरत देखूं मोहन की।।



वाणी में सरस व्यवहार सरल,

आंखो में है अंदाज उमंग,
वो आनन्द घन बरसाता है,
जब सुरत देखूं मोहन की,
बिन पिए नशा हो जाता है,
जब सुरत देखूं मोहन की।।



बिन पिये नशा हो जाता है,

जब सुरत देखूं मोहन की,
ना जाने क्या हो जाता है,
जब सुरत देखूं मोहन की,
बिन पिए नशा हो जाता है,
जब सुरत देखूं मोहन की।।

देखे – तुम रूठे रहो मोहन।

स्वर – अलका जी गोयल।


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Shekhar Mourya
Bhajan Lover / Singer / Writer / Web Designer & Blogger.

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