बरसाना मिल गया है,
मुझे और क्या कमी है,
श्री जी भी तो मिलेगी,
मुझको तो ये यकीं है,
बरसाना मिल गया हैं,
मुझे और क्या कमी है।।
जिस दिन से ब्रज की रज को,
मस्तक से है लगाया,
मेरे साथ साथ रहता,
मेरी लाड़ली का साया,
ऐसा लगे ना मेरे,
इन पैरों तले जमीं है,
श्री जी भी तो मिलेगी,
मुझको तो ये यकीं है,
बरसाना मिल गया हैं,
मुझे और क्या कमी है।।
संतों का स्पर्श पाकर,
मुझे छू गई हवाएं,
महलों का कोना कोना,
मुझे दिल से दे दुआएं,
नस नस में अब तो मेरे,
तेरी छवि रमी है,
श्री जी भी तो मिलेगी,
मुझको तो ये यकीं है,
बरसाना मिल गया हैं,
मुझे और क्या कमी है।।
सेतु बनाया जिसने,
राधा नाम के मैं वारि,
मेरी सोच से परे थी,
श्यामा तेरी अटारी,
राधा नाम के सहारे,
त्रिलोकी ये थमी है,
श्री जी भी तो मिलेगी,
मुझको तो ये यकीं है,
बरसाना मिल गया हैं,
मुझे और क्या कमी है।।
मेरी रूह का हाल जाने,
गेहवर की ये लताएं,
भीतर क्या चल रहा है,
ये ‘हरिदासी’ क्या बताएं,
इक प्रेम का है तूफां,
इन आँखों में जो नमी है,
श्री जी भी तो मिलेगी,
मुझको तो ये यकीं है,
बरसाना मिल गया हैं,
मुझे और क्या कमी है।।
बरसाना मिल गया है,
मुझे और क्या कमी है,
श्री जी भी तो मिलेगी,
मुझको तो ये यकीं है,
बरसाना मिल गया हैं,
मुझे और क्या कमी है।।
स्वर – साध्वी पूनम दीदी।