देखा अपने आप को,
मेरा दिल दीवाना हो गया,
ना छेड़िये यारों मुझे,
मैं खुद मस्ती में आ गया।।
लाखों सूरज और चन्द्रमा,
कुरबान है मेरे हुस्न पे,
अद्भुत छबी को देख के,
कहने से मैं सरमा गया।।
अब खुदी से बाहिर हैं हम,
इश्क कफनीं पहिन के,
सब रंग में चोला रंगा,
दीदार अपना पा गया।।
अब दिखता नहीं कोई मुझे,
दुनियां में मेरे ही सिवा,
दुई का दफ्तर फठा,
सारा भ्रम विला गया।।
‘अचलराम” अब खुदबखुद है,
महबूब मुझ से ना जुदा,
निज नूर में भरपूर हो,
अपने में आप समा गया।।
देखा अपने आप को,
मेरा दिल दीवाना हो गया,
ना छेड़िये यारों मुझे,
मैं खुद मस्ती में आ गया।।
गायक – राधेश्याम शर्मा।
रचना – स्वामी अचलराम जी महाराज।
प्रेषक – सांवरिया निवाई।
मो. – 7014827014