भूल बिसर मत जाना सांवरिया,
मेरी ओड़ निभाना जी।।
मोर मुकुट पीताम्बर सोहे,
कुंडल झलकत काना जी,
वृन्दावन की कुञ्ज गलिन में,
मोहन वंशी बजाना जी।।
हमरी तुम से लगन लगी है,
नित प्रति आना जी,
घट घट वासी अंतरयामी,
प्रेम का पंथ निभाना जी।।
जो मोहन मेरो नाम ना जानो,
मेरो नाम दीवाना जी,
हमरे आँगन तुलसी का बिरवा,
जिसके हरे हरे पाना जी।।
जो काना मेरो गाँव न जानो,
मेरो गाँव बरसाना जी,
सूरज सामी पोल हमारो,
चन्दन चौक निसाना जी।।
या तो ठाकुर दरसन दीजो,
नहीं तो लीजो प्राना जी,
मीरा के प्रभु गिरधर नागर,
चरणों में लिपटाना जी।।
भूल बिसर मत जाना सांवरिया,
मेरी ओड़ निभाना जी।।
स्वर – आचार्य सचिदानंदजी एवं संत राजूराम जी।
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