थारा बंगला में परदेसी,
डटेगो कोनी।
दोहा – आया है सो जाएगा,
राजा रंक फकीर,
कोई सिंहासन चढ़ चले,
कोई जाए बंधे जंजीर।
थारा बंगला में परदेसी,
डटगो कोनी,
डटेगो कोनी रे,
रुकेगो कोनी।।
या बंगला में दस दरवाजा,
बीच पवन का खंभा,
आवत जावत कुछ नहीं दिखे,
दीख्या बडा अचम्भा,
थारा बंगला मे परदेसी,
डटगो कोनी।।
पांच तत्व की ईंट बनाई,
तीन गुणो का गारा,
छत्तीसो की छत बनवायी,
चेतन चिन्तन हारा,
थारा बंगला मे परदेसी,
डटगो कोनी।।
या बंगला में चोपड़ मांडी,
खेले पांच पचीसा,
कोई कोई बाजी हार गया रे,
कोई कोई बाजी जीत्या,
थारा बंगला मे परदेसी,
डटगो कोनी।।
या बंगला में पातर नाचे,
मनवा ताल बजावे,
निरत सुरत का पहन घूंघरा,
राग छत्तीसों गावे,
थारा बंगला मे परदेसी,
डटगो कोनी।।
कहे मछंदर सुणो जती गोरख,
ज्याने बंगला गाया,
इस बंगला को गाने वाला,
फेर जनम नहीं पाया,
थारा बंगला मे परदेसी,
डटगो कोनी।।
थारा बंगला मे परदेसी,
डटगो कोनी,
डटेगो कोनी रे,
रुकेगो कोनी।।
गायक / प्रेषक – संजय लहरी लालसोट।
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