गुरु चरण कमल बलिहारी रे,
मेरे मन की दुविधा टारि रे,
गुरु चरण कमल बलिहारी रे।।
भव सागर में नीर अपारा,
डूब रहा नहीं मिले किनारा,
पल में लिया उबारी रे,
गुरु चरण कमल बलिहारि रे,
मेरे मन की दुविधा टारि रे,
गुरु चरण कमल बलिहारी रे।।
काम क्रोध मद लोभ लुटेरे,
जनम जनम के बैरी मेरे,
सबको दीन्हा मारी रे,
गुरु चरण कमल बलिहारि रे,
मेरे मन की दुविधा टारि रे,
गुरु चरण कमल बलिहारी रे।।
भेद भाव सब दूर कराया,
पूरण ब्रम्ह एक दर्शाया,
घट घट ज्योति निहारी रे,
गुरु चरण कमल बलिहारि रे,
मेरे मन की दुविधा टारि रे,
गुरु चरण कमल बलिहारी रे।।
जोग जुगत गुरुदेव बतलाई,
ब्रम्हानंद शांति मन आई,
मानुष देह सुधारी रे,
गुरु चरण कमल बलिहारि रे,
मेरे मन की दुविधा टारि रे,
गुरु चरण कमल बलिहारी रे।।
गुरु चरण कमल बलिहारी रे,
मेरे मन की दुविधा टारि रे,
गुरु चरण कमल बलिहारी रे।।
बहुत बहुत सुन्दर