अबके सतगुरु मोय जगायो,
दोहा – स्वामी सतगुरु ब्रह्म हैं,
फेर सार नहीं कोय,
सुंदर तिनको सिमरते,
सब सिद्द कारज होय।
दादू राम भजन रे कारणे,
जे थू खड़ा उदास,
साद संगत को सोदले,
राम उन्ही के पास।
दादू सतगुरु ऐसा मिले,
रज्जब शिष्य सुजान,
एक शब्द में सुलझ गया,
मिट गयी खींचातान।
बलिहारी गुरु आपनो,
घड़ी-घड़ी सौ सौ बार,
मानुष से देवत किया,
करत न लागी बार।
तीरथ गये ते एक फल,
सन्त मिले फल चार,
सतगुरु मिले अनेक फल,
कहें कबीर विचार।
सतगुरू की महिमा अनंत,
अनंत किया उपकार,
लोचन अनंत उघाडिया,
अनंत दिखावणहार।
गुरु बिन ज्ञान न उपजै,
गुरु बिन मिलै न मोष,
गुरु बिन लखै न सत्य को,
गुरु बिन मिटै न दोष।
अबके सतगुरु मोय जगायो,
सूतो हुओ अचेत नींद में,
बहुत काल दुख पायो,
अबके सतगुरु मोय जगायों।।
केई दफे देव भयो कर्मन से,
केई दफे इंद्र कहवायो,
केई दफे भूत पिशाच निशाचर,
खातों नाय अघायो,
अबके सतगुरु मोय जगायों।।
केई दफे मानुष देहि धरके,
भव मण्डल में आयो,
केई दफे पशु और पक्षी होकर,
कीट पतंग रे दिखायो,
अबके सतगुरु मोय जगायों।।
तीन गुणा रा कर्मन करके,
ना ना जूण भुगतायो,
स्वर्ग नरक पाताल लोक में,
ऐसो चक्र घुमायो,
अबके सतगुरु मोय जगायों।।
ये तो सपना आद अनादि,
वचन झेल थिर थायो,
सूंदर ज्ञान प्रकाश भयो तब,
सारो तिमिर मिटायो,
अबके सतगुरु मोय जगायों।।
अबके सतगुरु मोय जगायों,
सूतो हुओ अचेत नींद में,
बहुत काल दुख पायो,
अबके सतगुरु मोय जगायों।।
स्वर – टीमा बाई जी।
प्रेषक – रामेश्वर लाल पँवार।
आकाशवाणी सिंगर।
9785126052