लख चौरासी छोड़,
बनडो आयो रे।।
हरि रंग दीनो बनडो परणे,
सतगुरु जी के आके शरणे,
बांधे मुक्ति मोड़,
बनडो उमायो रे,
लख चौरासी छोड,
बनडो आयो रे।।
सत्संग जान बनीं है गहरी,
चार अवस्था चांवरिया हेरि,
तूरिया तोरण तोड़,
मोर उडायो रे,
लख चौरासी छोड,
बनडो आयो रे।।
तत्वमसि का बाजा बजाया,
ब्रह्मा विष्णु शिव मंगल गाया,
ज्ञान गरजोडो जोड़,
पाट बिछाया रे,
लख चौरासी छोड,
बनडो आयो रे।।
विदेह मुक्ति दुल्हन भई लेरां,
सात भोम का खालिया फेरा,
सत चित आनन्द पोड़,
किशन सुख पायो रे,
लख चौरासी छोड,
बनडो आयो रे।।
लख चौरासी छोड़,
बनडो आयो रे।।
प्रेषक – किशन गुर्जर।
9602995014