सतगुरु ऐसी कृपा कीजो,
भवसागर तारण की।।
तृष्णा लहर उठ न्यारी,
भंवर पड़ भारी,
नाव मेरी मझदारा हो रही,
डुबन की तैयारी,
सतगुरु ऐसी किरपा कीजो,
भवसागर तारण की।।
काम क्रोध घड़ियाल पड़ा है,
जंतु बड़ा भारी,
कर के विचार किनारों ढूंढू,
नजर थकी मारी,
सतगुरु ऐसी किरपा कीजो,
भवसागर तारण की।।
मल्लाह मेरे नजर ना आवे,
देख-देख हारी,
निज पुरुषा के काम ना आवे,
पच पच के हारी,
सतगुरु ऐसी किरपा कीजो,
भवसागर तारण की।।
भैरूराम जी सतगुरु मिल गया,
ल्याई जहाज भारी,
कमला जहाज पकड़ कर बैठी,
हो गई भव पारी,
सतगुरु ऐसी किरपा कीजो,
भवसागर तारण की।।
सतगुरु ऐसी कृपा कीजो,
भवसागर तारण की।।
गायक / प्रेषक – बाबूलाल प्रजापत।
9983222294
अति सुन्दर बाबुलाल जी