ओ दुर्गे मैया सुनले,
विनती हमारी माई री,
हो जा हमपे कृपालु,
हो जा हमपे दयालु,
आजा आजा हमारे भी गाँव में,
टूटी मड़ैया की छांव में।।
जहाँ सावन के झूले,
जहाँ बालू के टीले,
और पीपल की,
ठंडी ठंडी छांव में,
छाँव में छाँव में,
आजा आजा हमारे भी गाँव में,
टूटी मड़ैया की छांव में।।
जहाँ शाम सुहानी,
जहाँ रुत मस्तानी,
बाजे घुंघरू बहारों के,
पांव में पांव में,
आजा आजा हमारे भी गाँव में,
टूटी मड़ैया की छांव में।।
जहाँ स्वर्ण सबेरा,
जहाँ सूरज का डेरा,
आजा कागा की तूँ,
कांव कांव में,
कांव में कांव में,
आजा आजा हमारे भी गाँव में,
टूटी मड़ैया की छांव में।।
जहाँ शर्मो हया है,
जहां धर्म और दया है,
आजा राजेन्द्र के,
गाँव की ठाँव में,
ठाँव में ठाँव में,
आजा आजा हमारे भी गाँव में,
टूटी मड़ैया की छांव में।।
ओ दुर्गे मैया सुनले,
विनती हमारी माई री,
हो जा हमपे कृपालु,
हो जा हमपे दयालु,
आजा आजा हमारे भी गाँव में,
टूटी मड़ैया की छांव में।।
गीतकार / गायक-राजेन्द्र प्रसाद सोनी।
8839262340