क्या है भरोसा इस देह का,
दोहा – इस दुनिया की,
तमाम राहों पर,
लोग मिलते हैं छुट जाते हैं,
दिल के रिश्ते भी अजीब होते हैं,
जो सांस लेने से टुट जाते हैं।
करलै भजन की कमाई रे,
करता है भरोसा इस देह का,
क्या है भरोसा इस देह का,
करले नाम की कमाई रे।।
सांस पवन का बाहर भितर,
रहता आना जाना,
बाहर की बाहर रह जाए,
पल का नहीं ठिकाना,
काया किस काम आनी रे,
क्या हैं भरोसा इस देह का।।
मतलब के सब है जग वाले,
जा शमशान जलाए,
कोई न तेरे संग में रहता,
हंस अकेला जाएं,
प्रिति किसने निभाई रे,
क्या हैं भरोसा इस देह का।।
धन जोबन की बांध गाठडी,
माया पर झुला,
भरी जवानी मन में फुला,
तन का आपा भुला,
तेरी नहीं है भलाई थे,
क्या हैं भरोसा इस देह का।।
सतगुरु से ले नाम,
सुमीरन भजनों से किये जा,
मानव देह मिली है दुर्लभ,
इसको सफल किये जा,
तेरी इसमें भलाई रे,
क्या हैं भरोसा इस देह का।।
करलै भजन की कमाई रे,
करता है भरोसा इस देह का,
क्या हैं भरोसा इस देह का,
करले नाम की कमाई रे।।
गायक – सम्पत जी दधिच।
प्रेषक – विजय जांगिड़।
9479473166