गैरो से क्या गिला करे,
जब अपने बदल गए।
दोहा – चांदनी रात में,
बरसात बुरी लगती है,
दर्द सीने में हो तो,
हर बात बुरी लगती है।
अदाओं की मोहनी,
सूरत बिगाड़ देती है,
बड़ों बड़ों को,
जरूरत बिगाड़ देती है।
इस रंग भरी दुनिया में,
जरा संभल के चलना प्यारो,
क्योंकि कभी-कभी लोगों को,
किस्मत बिगाड़ देती है।
गैरो से क्या गिला करे,
जब अपने बदल गए,
आईना वही है मगर,
चेहरे बदल गए,
गैरों से क्या गिला करें,
जब अपने बदल गए।।
मेहंदी का रंग देखकर,
किस्मत बदल गई,
घर में बहू के आते ही,
बेटे बदल गए,
गैरों से क्या गिला करें,
जब अपने बदल गए।।
मैं भी तो वही हूँ,
मेरी पुकार वही है,
फिर क्यों दुनिया के लोग,
कैसे बदल गए,
गैरों से क्या गिला करें,
जब अपने बदल गए।।
जब था मेरे पास पैसा,
जब नाते हजार थे,
जब मैं हुआ गरीब तो,
सब नाते बदल गए,
गैरों से क्या गिला करें,
जब अपने बदल गए।।
गैरो से क्या गिला करें,
जब अपने बदल गए,
आईना वही है मगर,
चेहरे बदल गए,
गैरों से क्या गिला करें,
जब अपने बदल गए।।
Upload By – Manish Sondhiya