निकल जाए नैया भवर से हमारी,
गुरुदेव किरपा अगर हो तुम्हारी,
गुरुदेव किरपा अगर हों तुम्हारी।।
प्रखर ज्ञान की राह हमको दिखा दो,
प्रखर ज्ञान की राह हमको दिखा दो,
अँधियारा मेरे मन का मिटा दो,
खिल जाए मेरी किस्मत की क्यारी,
गुरुदेव किरपा अगर हों तुम्हारी।।
तेरी दृष्टि सारे जहाँ से निराली,
गुरु दृष्टि सारे जहाँ से निराली,
उन्नति के पथ पर ले जाने वाली,
कदमों में दुनिया झुका दूँ मैं सारी,
गुरुदेव किरपा अगर हों तुम्हारी।।
‘देवेन्द्र’ मंजिल तुम्ही से है पाता,
‘देवेन्द्र’ मंजिल गुरु से है पाता,
चरणों में गुरुदेव तेरे बसते विधाता,
‘कुलदीप’ कितनो की बिगड़ी संवारी,
गुरुदेव किरपा अगर हों तुम्हारी।।
निकल जाए नैया भवर से हमारी,
गुरुदेव किरपा अगर हो तुम्हारी,
गुरुदेव किरपा अगर हों तुम्हारी।।
स्वर – श्री देवेन्द्र पाठक महाराज जी।