मैं घर बना रहा हूँ किसी और के लिए भजन लिरिक्स

मैं घर बना रहा हूँ,
किसी और के लिए।

दोहा – पैर की आहत पाज़ेबों की,
झनकारे सुन लेती है,
धीरे बोलो राज़ की बातें,
दीवारें सुन लेती है।
सब गरीबी की देन है,
वर्ना इतनी जिल्लत कौन सहे,
भूखी माएँ पेट भरो की,
ललकारे सुन लेती है।



मैं घर बना रहा हूँ,

किसी और के लिए,
मैं घर बना रहा हूं,
किसी और के लिए,
खुद को मिटा रहा हूँ,
किसी और के लिए।।



माना की मेरे बाद,

कई फुल आएँगे,
पौधा लगा रहा हूँ,
पौधा लगा रहा हूँ,
किसी और के लिए,
मैं घर बना रहा हूं,
किसी और के लिए,
खुद को मिटा रहा हूँ,
किसी और के लिए।।



मैंने तो ठोकरों में,

गुजारी है जिंदगी,
पत्थर हटा रहा हूँ,
पत्थर हटा रहा हूँ,
किसी और के लिए,
मैं घर बना रहा हूं,
किसी और के लिए,
खुद को मिटा रहा हूँ,
किसी और के लिए।।



सिने में एक दर्द का,

तूफा लिए हुए,
मैं मुस्कुरा रहा हूँ,
मैं मुस्कुरा रहा हूँ,
किसी और के लिए,
मैं घर बना रहा हूं,
किसी और के लिए,
खुद को मिटा रहा हूँ,
किसी और के लिए।।



हालातें जिन्दगी ने,

मजबूर कर दिया,
परदेस जा रहा हूँ,
परदेस जा रहा हूँ,
किसी और के लिए,
मैं घर बना रहा हूं,
किसी और के लिए,
खुद को मिटा रहा हूँ,
किसी और के लिए।।



अब मेरे पास दिल के,

सिवा और कुछ नहीं,
वो भी लुटा रहा हूँ,
वो भी लुटा रहा हूँ,
किसी और के लिए,
मैं घर बना रहा हूं,
किसी और के लिए,
खुद को मिटा रहा हूँ,
किसी और के लिए।।



मैं घर बना रहा हूं,

किसी और के लिए,
मैं घर बना रहा हूं,
किसी और के लिए,
खुद को मिटा रहा हूँ,
किसी और के लिए।।

स्वर – दिलीप जी गवैया।


Previous articleसुन्धा री धणीयाणी म्हारी चामुण्डा महारानी ओ माँ
Next articleजय जय राधा रमण हरी बोल भजन लिरिक्स
Shekhar Mourya
Bhajan Lover / Singer / Writer / Web Designer & Blogger.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here