कैसे मैं कह दूं रे, जी घबराता है,
साथ ही मेरे रहता है रे,
दानी दाता है,
मुझसे ये सपने में,
लाड़ लड़ाता है,
साथ ही मेरे रहता है रे,
दानी दाता है।।
तर्ज – तुझको ना देखूं तो।
चांद और सितारे, जग में हैं न्यारे,
बाबा को लगते, ये भी तो प्यारे,
ये भी निहारे, खाटू नगरिया,
जाने है इन की, मन की सांवरिया,
जिसको ही, चाहे यो, दर्शन पाता है,
साथ ही मेरे रहता है रे,
दानी दाता है।।
फूल और बहारें, देखो रे सारे,
कितने हैं सुन्दर, इनके नज़ारे,
कैसे वो देखें, बन गए जो भगवन,
रहते वो खुद में, हरदम यहां मगन,
ऐसो का, बाबा से,
झूठा नाता है,
साथ ही मेरे रहता है रे,
दानी दाता है।।
होती ना मुश्किल, रहती ना उलझन,
कहां है उदासी, रहता हूं बन-ठन,
जब भी बुलाये, मुझको ये खाटू,
करता है मुझपे, ऐसा ये जादू,
फिर ‘जालान’ भजनों से,
इसे रिझाता है,
साथ ही मेरे रहता है रे,
दानी दाता है।।
कैसे मैं कह दूं रे, जी घबराता है,
साथ ही मेरे रहता है रे,
दानी दाता है ,
मुझसे ये सपने में,
लाड़ लड़ाता है,
साथ ही मेरे रहता है रे,
दानी दाता है।।
गायक – किशन मुद्गल।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
पवन जालान जी।
94160-59499
भिवानी (हरियाणा)