मै क्या जानू राम तेरा गोरखधंधा,
दोहा – चलती चक्की को देखकर,
दिया कबीरा रोय,
दो पाटन के बिच में,
साबुत बचा ना कोई।
दाता थारे हाथ में,
और जिया जून की डोर,
चेत के चाल कबीरा,
देवे कौन जमारो खोर।
मै क्या जानू राम तेरा गोरखधंधा,
गोरखधंधा, गोरखधंधा,
गोरखधंधा राम,
मै क्या जानू राम तेरा गोरखधंधा।।
धरती और आकाश बिच में,
सूरज तारे चन्दा,
हवा बादलो बिच में वर्षा,
तामनी दंदा राम,
मै क्या जानू राम तेरा गोरखधंधा।।
एक चला जाये,
चार देते है कन्धा,
किसी को मिलती आग,
किसी को मिल जाये फंदा,
मै क्या जानू राम तेरा गोरखधंधा।।
कोई पड़ता घोर नरक,
कोई सुरगी संदा,
क्या होनी क्या अनहोनी,
नही जाने रे बंदा राम,
मै क्या जानू राम तेरा गोरखधंधा।।
कहे कबीर प्रगट माया,
फिर भी नर अँधा,
सब के गले में डाल दिया,
मोह माया का फंदा,
मै क्या जानू राम तेरा गोरखधंधा।।
मैं क्या जानू राम तेरा गोरखधंधा,
गोरखधंधा, गोरखधंधा,
गोरखधंधा राम,
मै क्या जानू राम तेरा गोरखधंधा।।
Bhut hi madhur bhajn