काया कुटिया निराली जमाने भर से भजन लिरिक्स

काया कुटिया निराली,
जमाने भर से,
दस दरवाजे वाली,
जमाने भर से।।



सबसे सुन्दर आँख की खिड़की,

जिसमें पुतली काली,
जमाने भर से।
काया कुटीया निराली,
जमाने भर से,
दस दरवाजे वाली,
जमाने भर से।।



सुनते श्रवण नासिका सूंघे,

वाणी करे बोला चाली,
जमाने भर से।
काया कुटीया निराली,
जमाने भर से,
दस दरवाजे वाली,
जमाने भर से।।



लेना देना ये कर करते हैं,

पग चाल चले मतवाली,
जमाने भर से।
काया कुटीया निराली,
जमाने भर से,
दस दरवाजे वाली,
जमाने भर से।।



मुख के भीतर रहती रसना,

षट रस स्वादों वाली,
जमाने भर से।
काया कुटीया निराली,
जमाने भर से,
दस दरवाजे वाली,
जमाने भर से।।



काम क्रोध मद लोभ मोह से,

बुध्दि करे रखवाली,
जमाने भर से।
काया कुटीया निराली,
जमाने भर से,
दस दरवाजे वाली,
जमाने भर से।।



करके संग इंद्रियो का मन,

ये बन बैठा जंजाली,
जमाने भर से।
काया कुटीया निराली,
जमाने भर से,
दस दरवाजे वाली,
जमाने भर से।।



इस कुटिया का नित्य किराया,

स्वास् चुकाने वाली,
जमाने भर से।
काया कुटीया निराली,
जमाने भर से,
दस दरवाजे वाली,
जमाने भर से।।



काया कुटिया निराली,

जमाने भर से,
दस दरवाजे वाली,
जमाने भर से।।

स्वर – पूज्य राजेश्वरानंद जी महाराज।
प्रेषक – रामेश्वर लाल पँवार, आकाशवाणी सिंगर।
9785126052


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Shekhar Mourya
Bhajan Lover / Singer / Writer / Web Designer & Blogger.

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