मैं राम भजु गुरु को ना बिसारुं,
गुरु के संग हरी को ना निहारूं,
मैं राम भजुँ गुरु को ना बिसारुं।।
हरी ने जनम दियो जग माहि,
गुरु ने आवागमन छुड़ाई,
मैं राम भजुँ गुरु को ना बिसारुं।।
हरी ने मोह जाल में घेरी,
गुरु ने काटी ममता बेड़ि,
मैं राम भजुँ गुरु को ना बिसारुं।।
हरी ने मोसो आप छिपायो,
गुरु दीपक दे ताहि दिखायो,
मैं राम भजुँ गुरु को ना बिसारुं।।
मैं गुरु चरणन पे तन मन वारूँ,
गुरु ना तजू हरी को तज डारु,
मैं राम भजुँ गुरु को ना बिसारुं।।
मैं राम भजु गुरु को ना बिसारुं,
गुरु के संग हरी को ना निहारूं,
मैं राम भजुँ गुरु को ना बिसारुं।।
स्वर – ब्रजरस अनुरागी श्री पूनम दीदी जी।
Very nice