सुना है हमने ये,
वेद पुराणो में,
प्रभु तो बसते है,
गुरु के प्राणों में,
गुरु कृपा से ही प्रभु मिले है,
सदा रहना दिल में तू गुरुवर के,
सुना हैं हमने ये,
वेद पुराणो में,
प्रभु तो बसते है,
गुरु के प्राणों में।।
तर्ज – मिले हो तुम हमको बड़े।
गुरु के मुख से निकलता,
प्रभु नाम है,
सुबह शाम आठो पहर,
यही काम है,
भक्त को भगवान मिले,
यही भावना है,
गुरुदेव को सदा यही चाहना है,
सदा ही रहना तुम,
गुरु के चरणों में,
प्रभु तो बसते है,
गुरु के प्राणों में।।
“दिलबर” के दिल में,
गुरु की मूरत है,
बिन गुरु मिलती कहाँ,
जन्नत है,
जिनको गुरु का,
सहारा मिला है,
‘प्राची’ ये खुशियो से,
जीवन खिला है,
गुरु की वाणी हो,
सदा ही कर्णो में,
प्रभु तो बसते है,
गुरु के प्राणों में।।
सुना है हमने ये,
वेद पुराणो में,
प्रभु तो बसते है,
गुरु के प्राणों में,
गुरु कृपा से ही प्रभु मिले है,
सदा रहना दिल में तू गुरुवर के,
सुना हैं हमने ये,
वेद पुराणो में,
प्रभु तो बसते है,
गुरु के प्राणों में।।
गायिका – प्राची जैन बॉम्बे।
लेखक – दिलीप सिंह सिसोदिया “दिलबर”
9907023365