मुझे नहीं मालूम हुआ ये,
कैसे सारा काम जी,
मैं तो एक जरिया हूँ,
कर्ता धर्ता है श्री राम जी,
मैं तो एक जरिया हूँ,
कर्ता धर्ता है श्री राम जी।।
बिना पंख और बिना यान मैं,
कैसे सागर पार गया,
कैसे बच गया सुरसा से,
कैसे निशिचरी को मार गया,
प्रभु इच्छा से दुष्ट लंकिनी,
पहुँच गई यम धाम जी,
मैं तो एक जरिया हूँ,
कर्ता धर्ता है श्री राम जी।।
माँ सिता के दर्शन करके,
मिटी मेरी चिंता सारी,
वृक्षों पर फल देखके मैया,
मुझको भूख लगी भारी,
भूख मिटाने की खातिर,
वहाँ करना पड़ा संग्राम जी,
मैं तो एक जरिया हूँ,
कर्ता धर्ता है श्री राम जी।।
युद्ध में मर गए कुछ सेनिक,
और रावण का एक पुत्र मरा,
मेघनाद ने बाँध मुझे,
रावण की सभा में पेश करा,
मेरी पूछ जलाने का वहाँ,
खेल हुआ सरेआम जी,
मैं तो एक जरिया हूँ,
कर्ता धर्ता है श्री राम जी।।
जतन कर रहा था मैं तो वहाँ,
अपनी पूंछ बुझाने का,
मुझको दोषी मान लिया,
रावण की लंका जलाने का,
बाल एक नही जला पूंछ का,
लंका जली तमाम जी,
मैं तो एक जरिया हूँ,
कर्ता धर्ता है श्री राम जी।।
पूंछ बची और जान बची,
प्रभु ने मुझ पर अहसान किया,
अजर अमर होने का मुझे,
माँ सिता ने वरदान दिया,
काम किया सब प्रभु राम ने,
अमर हुआ हनुमान जी,
मैं तो एक जरिया हूँ,
कर्ता धर्ता है श्री राम जी।।
मुझे नहीं मालूम हुआ ये,
कैसे सारा काम जी,
मैं तो एक जरिया हूँ,
कर्ता धर्ता है श्री राम जी,
मैं तो एक जरिया हूँ,
कर्ता धर्ता है श्री राम जी।।
स्वर – राकेश जी काला।