मुझे खाटू आने जाने की,
आदत हो गई है,
आदत हो गई है,
हाँ आदत हो गई है,
बाबा से मिलने जुलने की,
चाहत हो गई है,
मुझे खाटु आने जाने की,
आदत हो गई है।।
सांवरिया से नैन मिले तो,
दिल हाथों से निकल गया,
होश गंवाया चैन गंवाया,
मनवा मेरा मचल गया,
श्याम बिना रहना मुश्किल,
ये हालत हो गई है,
मुझे खाटु आने जाने की,
आदत हो गई है।।
जितना सोणा खाटू वाला,
उतना कोई और नहीं,
ऐसा साथी ऐसा माझी,
देखा नहीं है और कहीं,
मुझ पर भी सांवरिये की,
रहमत हो गई है,
मुझे खाटु आने जाने की,
आदत हो गई है।।
मुझको अपना मान लिया है,
अब तो शीश के दानी ने,
श्याम कृपा के फुल खिले,
‘चोखानी’ की जिंदगानी में,
‘अदिति’ पर भी श्याम नाम की,
बरकत हो गई है,
मुझे खाटु आने जाने की,
आदत हो गई है।।
मुझे खाटू आने जाने की,
आदत हो गई है,
आदत हो गई है,
हाँ आदत हो गई है,
बाबा से मिलने जुलने की,
चाहत हो गई है,
मुझे खाटु आने जाने की,
आदत हो गई है।।
स्वर – अदिति पारासर।