अपना चंदा सा मुखड़ा दिखाए जा,
मोर मुकुट वारे घुंघराली लट वारे।।
तो बिन मोहन चैन पड़े ना,
नैनो से उलझाए नैना,
मेरी अखियन बिच समाए जा,
मोर मुकुट वारे घुंघराली लट वारे।।
बेदर्दी तोहे दर्द ना आवे,
काहे जले पे लोण लगावे,
लागा प्रेम का रोग मिटाए जा,
मोर मुकुट वारे घुंघराली लट वारे।।
टेढ़ी धरी तेने मुख पे मुरलिया,
टेढ़ो तू चितचोर सांवरिया,
टेढ़ी नजरों के तीर चलाय जा,
मोर मुकुट वारे घुंघराली लट वारे।।
काहे तो संग प्रीत लगाई,
निष्ठुर निकला तू हरजाई,
लागा प्रीत का रोग मिटाए जा,
मोर मुकुट वारे घुंघराली लट वारे।।
मुरली अधरन धर मुसकावे,
घायल कर क्यों नैन चुरावे,
टेढ़ी नजरों के तीर चलाय जा,
मोर मुकुट वारे घुंघराली लट वारे।।
अपना चंदा सा मुखड़ा दिखाए जा,
मोर मुकुट वारे घुंघराली लट वारे।।
स्वर – श्री विनोद जी अग्रवाल।
प्रेषक – रजत उपाध्याय।
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