मुझे वृन्दावन बसाया,
ये कृपा नहीं तो क्या है,
सोये भाग्य को जगाया,
सोये भाग्य को जगाया,
ये कृपा नहीं तो क्या है,
मुझें वृन्दावन बसाया,
ये कृपा नहीं तो क्या है।।
भटका था दर-ब-दर का,
विषयों में मन फसाके,
विषयों से मन हटाया,
विषयों से मन हटाया,
ये कृपा नहीं तो क्या है,
मुझें वृन्दावन बसाया,
ये कृपा नहीं तो क्या है।।
मैं भूल कर के तुमको,
सुख चैन सारा खोया,
जंजाल से बचाया,
जंजाल से बचाया,
ये कृपा नहीं तो क्या है,
मुझें वृन्दावन बसाया,
ये कृपा नहीं तो क्या है।।
कीचड़ की कंकड़ी को,
मंदिर बना दिया रे,
चरणों में चित लगाया,
चरणों में चित लगाया,
ये कृपा नहीं तो क्या है,
मुझें वृन्दावन बसाया,
ये कृपा नहीं तो क्या है।।
ऐसा लगाया चस्का,
अपने ही प्रेम रस का,
पागल मुझे बनाया,
पागल मुझे बनाया,
ये कृपा नहीं तो क्या है,
मुझें वृन्दावन बसाया,
ये कृपा नहीं तो क्या है।।
मुझे वृन्दावन बसाया,
ये कृपा नहीं तो क्या है,
सोये भाग्य को जगाया,
सोये भाग्य को जगाया,
ये कृपा नहीं तो क्या है,
मुझें वृन्दावन बसाया,
ये कृपा नहीं तो क्या है।।
स्वर – रमण भैया।