हद में तो दाता खेल रचायो,
बेहद मायने आप फिरे,
अधर धरा पर आसन मांड्यो,
धरा गगन बीच मौज करे हो जी।।
ए,,, हंसा होय हंसा संग बैठे,
कागा रे संग नहीं ओ फिरे,
नुगरा नर तो फिरे भटकता,
अरे मौजी वेतो मौज करे हो जी।।
ए,,, अरे अमर जडी गुरूदाता से पाई,
राम रे नैना सु मारे नेडी फिरे,
उन बूटी रा वर्जन पापा,
अरे उनसु करोडो दूर फिरे हो जी।।
ए,,, अरे समरत गुरूजी रे शरणा में,
वो गट गाटा गेला फिरे,
गुरू ग्यान पारस नही कियोजी,
अरे वनजीवो ने पार करे हो जी।।
ए,,, लडे चले सूरो रे सागे,
कायर वेतो देख डरे,
कहे भैरव गुरु दयाल के शरने,
करोडो जन्म रा पाप टले हो जी।।
हद में तो दाता खेल रचायो,
बेहद मायने आप फिरे,
अधर धरा पर आसन मांड्यो,
धरा गगन बीच मौज करे हो जी।।
स्वर – प्रकाश माली जी।
प्रेषक – मनीष सीरवी
9640557818