मंदिर में अपने हमें रोज बुलाते हो भजन लिरिक्स

मंदिर में अपने हमें रोज बुलाते हो,
कभी कभी हमसे भी मिलने,
क्यों नहीं आते हो,
मंदिर में अपने हमें रोज बुलाते हो।।



हमेशा हम ही आते है,

फर्ज तेरा भी आने का,
कभी प्रेमी के घर पे भी,
कन्हैया खाना खाने का,
प्रेम निभाने में तुम क्यों शरमाते हो,
प्रेम निभाने में तुम क्यों शरमाते हो,
कभी कभी हमसे भी मिलने,
क्यों नहीं आते हो,
मंदिर में अपने हमें रोज बुलाते हो।।



कमी है प्यार में मेरे,

या हम लायक नही तेरे,
बता दो खुलकर ये कान्हा,
बात जो मन में हो तेरे,
दिल की कहने में तुम क्यों घबराते हो,
दिल की कहने में तुम क्यों घबराते हो,
कभी कभी हमसे भी मिलने,
क्यों नहीं आते हो,
मंदिर में अपने हमें रोज बुलाते हो।।



तुम्हारे भक्त है लाखों,

तुम्हे फुर्सत नहीं होगी,
क्या कभी ‘मोहित’ इस दिल की,
पूरी हसरत नहीं होगी,
रह रह के हमको तुम क्यों तड़पाते हो,
रह रह के हमको तुम क्यों तड़पाते हो,
कभी कभी हमसे भी मिलने,
क्यों नहीं आते हो,
मंदिर में अपने हमें रोज बुलाते हो।।



मंदिर में अपने हमें रोज बुलाते हो,

कभी कभी हमसे भी मिलने,
क्यों नहीं आते हो,
मंदिर में अपने हमें रोज बुलाते हो।।

स्वर – मनीष भट्ट।
प्रेषक – अंकित उपाध्याय (श्योपुर)


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Shekhar Mourya
Bhajan Lover / Singer / Writer / Web Designer & Blogger.

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