मैं तो आरती उतारूँ रे,
श्री राधा रसिक बिहारी की,
मेरे प्यारे निकुंज बिहारी की,
प्यारे प्यारे श्री बाँके बिहारी की,
मैं तो आरती उतारूं रे,
श्री राधा रसिक बिहारी की।।
मोर पखा अलके घूंघराली,
बार बार जाऊँ बलिहारी,
कुंडल की छवि न्यारी की,
प्यारे प्यारे श्री बाँके बिहारी की,
मैं तो आरती उतारूं रे,
श्री राधा रसिक बिहारी की।।
साँवरिया की साँवरी सूरत,
मन मोहन की मोहनी मूरत,
तिरछी नज़र बिहारी की,
मेरे प्यारे निकुंज बिहारी की,
मैं तो आरती उतारूं रे,
श्री राधा रसिक बिहारी की।।
गल सोहे वैजंती माला,
नैन रसीले रूप निराला,
मन मोहन कृष्ण मुरारी की,
प्यारे प्यारे श्री बाँके बिहारी की,
मैं तो आरती उतारूं रे,
श्री राधा रसिक बिहारी की।।
पागल के हो प्राणन प्यारे,
प्राणन प्यारे नैनन तारे,
मेरी श्यामा प्यारी की,
श्री हरीदास दुलारी की,
मैं तो आरती उतारूं रे,
श्री राधा रसिक बिहारी की।।
मैं तो आरती उतारूँ रे,
श्री राधा रसिक बिहारी की,
मेरे प्यारे निकुंज बिहारी की,
प्यारे प्यारे श्री बाँके बिहारी की,
मैं तो आरती उतारूं रे,
श्री राधा रसिक बिहारी की।।
स्वर – श्री चित्र विचित्र जी महाराज।