वैष्णव जन तो तेने कहिये जे,
पीड़ परायी जाणे रे,
पर दुख्खे उपकार करे तोये,
मन अभिमान ना आणे रे,
वैष्णव जन तो तेने कहिए जे,
पीड़ परायी जाणे रे।।
सकळ लोक मान सहुने वंदे,
नींदा न करे केनी रे,
वाच काछ मन निश्चळ राखे,
धन धन जननी तेनी रे,
वैष्णव जन तो तेने कहिए जे,
पीड़ परायी जाणे रे।।
सम दृष्टी ने तृष्णा त्यागी,
पर स्त्री जेने मात रे,
जिह्वा थकी असत्य ना बोले,
पर धन नव झाली हाथ रे,
वैष्णव जन तो तेने कहिए जे,
पीड़ परायी जाणे रे।।
मोह माया व्यापे नही जेने,
द्रिढ़ वैराग्य जेना मन मान रे,
राम नाम सुन ताळी लागी,
सकळ तिरथ तेना तन मान रे,
वैष्णव जन तो तेने कहिए जे,
पीड़ परायी जाणे रे।।
वण लोभी ने कपट रहित छे,
काम क्रोध निवार्या रे,
भणे नरसैय्यो तेनुन दर्शन कर्ता,
कुळ एकोतेर तारया रे,
वैष्णव जन तो तेने कहिए जे,
पीड़ परायी जाणे रे।।
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे,
पीड़ परायी जाणे रे,
पर दुख्खे उपकार करे तोये,
मन अभिमान ना आणे रे,
वैष्णव जन तो तेने कहिए जे,
पीड़ परायी जाणे रे।।
Singer: Sanjeevani Bhelande
“नरसिंह मेहता की रचना”