पांचो आँँगलियां में राख दीयो फरको राजस्थानी भजन लिरिक्स

पांचो आँँगलियां में राख दीयो फरको,
खेल न्यारो ही देख्यो छ रघुवर को,
न्यारो ही देख्यो छ रघुवर को,
खेल न्यारो ही देख्यो छ रघुवर को।।



एक जीव चौरासी काया,

वहाँ से आया मीनक बणाया,
कोई भेद न पायो नटवर को,
खेल न्यारो ही देख्यो छ रघुवर को।।



खेल खिलौना की दुनिया बणादी,

राँख लियो वो खुद कन चाबी,
को न रयो रे भरोसो पल भर को,
खेल न्यारो ही देख्यो छ रघुवर को।।



समय सरू की लगाम बणायो,

बड़ा बड़ा पर दाव चलायो,
कोई घाट को राख्यो न कोई घर को,
खेल न्यारो ही देख्यो छ रघुवर को।।



गुण अवगुण यश अपयश सारा,

कर्म गति का खेल है न्यारा,
को न मालुनी खेल चतरंन को
खेल न्यारो ही देख्यो छ रघुवर को।।



पांचो आँँगलियां में राख दीयो फरको,

खेल न्यारो ही देख्यो छ रघुवर को,
न्यारो ही देख्यो छ रघुवर को,
खेल न्यारो ही देख्यो छ रघुवर को।।

गायक – रामकुमार मालुणी।
प्रेषक – महावीर दादौली,
9571693202


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Shekhar Mourya
Bhajan Lover / Singer / Writer / Web Designer & Blogger.

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