ऊँचे पहाड़ो पर, बैठी माँ,
ऊँचे पहाड़ो पर,
क्या कहना कि बारहो महिने,
लगे भक्तो का मैला,
लाखो हजारो में, सुनो भाई,
लाखो हजारो में,
क्या कहना कि बारहो महिने,
लगे भक्तो का मैला।।
तर्ज – हुस्न पहाड़ो का।
ऊँचे ऊँचे पर्वत चढ़ते जाए,
पाँवो में छाले पड़ जाए,
जयकारा माता का लगाए,
जयकारा माता का लगाए,
ऊँची अावाजो में, सुनो भाई,
ऊँची अवाजो में,
क्या कहना कि बारहो महिने,
लगे भक्तो का मैला।।
मन में जो उम्मीदे लाए,
मन की मुरादे ले कर जाए,
कोई यहाँ से न खाली जाए,
कोई यहाँ से न खाली जाए,
महिमा निराली है,यहाँ की,
महिमा निराली है,
क्या कहना कि बारहो महिने,
लगे भक्तो का मैला।।
जो एक बार यहाँ पर आए,
वो हर बार यहाँ पर आए,
माँ के बिना वो रह नही पाए,
माँ के बिना वो रह नही पाए,
करती है भक्तो पर,दया माँ,
करती है भक्तो पर,
क्या कहना कि बारहो महिने,
लगे भक्तो का मैला।।
ऊँचे पहाड़ो पर, बैठी माँ,
ऊँचे पहाड़ो पर,
क्या कहना कि बारहो महिने,
लगे भक्तो का मैला,
लाखो हजारो में, सुनो भाई,
लाखो हजारो में,
क्या कहना कि बारहो महिने,
लगे भक्तो का मैला।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923
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