माटी के पुतले रे तेरा अपना यहाँ नहीं कोय भजन लिरिक्स

माटी के पुतले रे,
तेरा अपना यहाँ नहीं कोय,
तेरा अपना यहाँ नहीं कोय,
सतगुरु ने कितना समझाया,
अब काहे को रोए रे,
ऐ अब काहे को रोय,
तेरा अपना यहाँ नही कोय,
माटी के पुतले रे।।

तर्ज – पिंजरे के पंछी रे।



भूखा प्यासा रह कर तू ने,

करदी न्योछावर,
ये जिन्दगानी रे,
जिसकी खातिर महल बनाया,
जिसकी खातिर महल बनाया,
वो ही न तेरा होय,
तेरा अपना यहाँ नही कोय,
माटी के पुतले रे।।



करले जो भी करना है तुझको,

समय सुहाना बिता जाए रे,
चला गया ये समय तो पगले,
चला गया ये समय तो पगले,
फिर वापस न होय,
तेरा अपना यहाँ नही कोय,
माटी के पुतले रे।।



खुद के लिए कुछ कर ले कमाई,

बीत रही तेरी जिन्दगानी रे,
कल कल में जीवन कई बीते,
कल कल में जीवन कई बीते,
कल न तेरा होय,
तेरा अपना यहाँ नही कोय,
माटी के पुतले रे।।



माटी के पुतले रे,

तेरा अपना यहाँ नहीं कोय,
तेरा अपना यहाँ नहीं कोय,
सतगुरु ने कितना समझाया,
अब काहे को रोए रे,
ऐ अब काहे को रोय,
तेरा अपना यहाँ नही कोय,
माटी के पुतले रे।।

– भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923

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Shekhar Mourya
Bhajan Lover / Singer / Writer / Web Designer & Blogger.

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