हरि नाम की महिमा,
गाती है सारी दुनिया,
बोल मनवा बोल तू हरि को,
ध्याता क्यो नही।।
तर्ज – तेरे मन की यमुना और।
जग की खातिर कर्म अनेको,
करता है तू जमाने मे,
उसमे से भी एक पल दे दे,
जो तू हरि को रिझाने मे,
तर जाएगी नैया भव से,
डूबेगी नही,
बोल मनवा बोल तू हरि को,
ध्याता क्यो नही।।
न दुख तेरा न सुख मेरा,
है ये रीत जमाने की,
प्रभू ने खुद ये रीत बनाई,
हरि से प्रीत बढ़ाने की,
आजा शरण गुरू की मनवा,
जाना न कही,
बोल मनवा बोल तू हरि को,
ध्याता क्यो नही।।
कल कल मे जीवन कई बीते,
कल न तेरा आएगा,
पलछिन पलछिन,
बीते हर दिन,
कल न तेरा आएगा,
आज मिला है मानुष तन,
कल पाए कि नही,
बोल मनवा बोल तू हरि को,
ध्याता क्यो नही।।
हरि नाम की महिमा,
गाती है सारी दुनिया,
बोल मनवा बोल तू हरि को,
ध्याता क्यो नही।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923
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